Monday 12 November 2012

गाँव रावत खेड़ा के बारे में !

आइये आपको रावत खेड़ा के इतिहास के बारे में अवगत करवाते है !
गाँव रावत खेड़ा का जम्भेश्वेर मंदिर केवल एक मात्र हरियाणा व् पंजाब की बिश्नोई आबादी का साथरी मंदिर है .यहाँ गाँव बसने से पहले गुरु जी देश में भ्रमण करते हुए हजुरी साधू संतो व् भक्तो की जमात सहित पधारे थे .
गाँव की  बसाहट पुरानी आबादी ऊँचे टीले पर ही रही थी .कालांतर में आबादी बढने पर नीचे स्थान पर बसाहट हुई .वर्तमान मंदिर ऊँचे टीले पर ही सिथित  है .

गाँव से पूर्व में दो फर्लांग पर पिपलिया नामक जोहड़ में पानी की उपलब्धता गुरु जी के यहाँ ठहरने का पर्मुख कारण रही थी .

तत्कालीन समय में सिवानी व  मंगाली दो पुराने आबाद गाँव थे इसलिए राजस्थान से जोड़ने वाला मार्ग सिवानी से होकर उपरोक्त पिपलिया जोहड़ से होते हुए मंगाली - हांसी आदि प्राचीन आबादी से जोड़ता था .इसलिए इसी मार्ग से गुजरते हुए आगे उत्तर परदेश तक भरमन गुरु महाराज के साहित्य में मिलता है .

गुरु महाराज ने यहाँ अपने साथियों के साथ विश्राम किया ,तो हवन नियम का भी पालन किया था .कुछ काल बाद गाँव बसाने वाले ठाकुर श्री रावत सिंह जी भादरा से नया गाँव बसाने की कामना लेकर यहाँ टीले पर पधारे .उनके पुरोहित को सवप्न में परम संत हवन करते दिखाई दिए  .उन्होंने सवप्न ठाकुर साहब को सुनाया तो इसी टीले पर गाँव बसाने का निर्णय हुआ .

नए पंथ के अनुयाई बिश्नोई बंधू भी यहाँ आए तो ठाकुर साहब के आग्रह पर गाँव में बस गए .सपने के संत की पहचान करते हुए बिश्नोई बंधुओ ने गुरु महाराज की पहचान की ,ये तो हमारे देव श्री गुरु जम्भेश्वेर जी है .तो राठोड़ वंसी ठाकुर साहब भी नशे आदि का त्याग करके सात्विक जीवन जीने लगे .शिकार करने वाली जातियों को भी गाँव में बसने भी नहीं दिया .
 इस साथरी को मान्यता देते हुए उन्होंने इसके बराबर कोई अन्य मंदिर या देवरा का निर्माण नहीं करवाया .

गाँव में बसने वाले राजपूत ,दर्जी ,कुम्हार ,सुथार ,बनिये व ब्राह्मण आदि जातियां भी गाँव बसने से आज तक इसी साथरी को मान्यता देती आई है .
कालांतर में महाजन गाँव के मालिक बने ,उन्होंने इस साथरी का सम्मान करते हुए कोई अन्य मंदिर नही बनवाया .
लम्बे समय से बिश्नोई समाज में मुकाम के बाद पुराने पंजाब में 84 गाँवो में बिश्नोइओ की आबादी थी इसलिए इसका मुकाम के बाद दूसरा स्थान था .यहाँ भियासर के महंतो से गद्दी परम्परा चली आई .अंतिम महंत जगदीश राम का देहांत लगभग 50 साल पहले हुआ था .इसके बाद गद्दी परम्परा बंद हो गई .

आज भी लोग मनोकामना पूर्ति के लिए रावत खेड़ा साथरी की धोक बोलते है  .कार्य सिद्ध होने पर धोक लगाने आते है .आज भी पडोसी गाँव के लोग अमावस्या पर साथरी पर धोक लगाने आते है .



बाकि का विवरण अगले अंक में आप के साथ शेयर करेंगे !

जय गुरु देव !


4 comments:

  1. Jai Ho Guru JAMBHESHWAR ji ki 🙏

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